मनोज राम-रानी लक्ष्मी बाई जी की जयंती पर शत शत नमन

कवियत्री सुभद्रा कुमारी चौहान की रानी लक्ष्मीबाई की विरता पर लिखी कविता 'खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी'  सभी ने सुनी होगी। आज का दिन उन्हीं वीरागंना की जयंती के रूप में मनाते हैं। रानी लक्ष्मीबाई का जन्म वाराणसी जिले के भदैनी में 19 नवंबर 1835 को हुआ था। अंग्रेजों के खिलाफ आजादी का नारा बुलंद करने वाली रानी लक्ष्मीबाई, भारतीय स्वंतत्रता संग्राम की पहली वीरांगना थी।  इनके बचपन का नाम मणिकर्णिका था लेकिन प्यार से इन्हें मनु बुलाते थे। इनकी माता का नाम भागीरथी बाई तथा पिता का नाम मोरोपंत तांबे था। मोरोपंत एक मराठी थे और मराठा बाजीराव की सेवा में थे।

एक समय था जब एक-एक कर कई राजाओं ने अंग्रेजों के सामने घुटने टेक दिए थे लेकिन झांसी की रानी  लक्ष्मीबाई ने अपने साहस के दम पर अंग्रेजों को धूल चटाई थी. उन्होंने सिर्फ़ 29 साल की उम्र में अंग्रेज साम्राज्य की सेना से लड़ाई की और रणभूमि में वीरगति को प्राप्त हुईं. रानी लक्ष्मीबाई  ने झांसी की रक्षा के लिए सेना में महिलाओं की भर्ती की थी, और उन्हें युद्ध का प्रशिक्षण दिया था. साधारण जनता ने भी अंग्रेजों से झांसी को बचाने के लिए हुए इस संग्राम में सहयोग दिया था.

1842  में मणिकर्णिका का विवाह झांसी के राजा गंगाधर राव  से हुआ। राजा गंगाधर राव झांसी के एक योग्य मराठा राजा थे। उनके कार्यकाल से पहले झांसी अंग्रेज़ों के कर्ज तले दबी हुई थी. लेकिन सत्ता में आने के बाद कुछ ही सालों में उन्होंने अंग्रेज़ों को बाहर कर दिया। इस वक्त में रानी लक्ष्मीबाई उनके साथ थी।

राजा गंगाधर राव की मृत्यु के बाद रानी लक्ष्मीबाई कमज़ोर पड़ने लगीं और इस बात का फायदा अंग्रेज़ सरकार और पड़ोसी राज्यों ने उठाया, इन सभी ने मिलकर झांसी पर आक्रमण आरंम्भ कर दिया। 1857 तक झांसी दुश्मनों से घिर चुकी थी और फिर झांसी को दुश्मनों से बचाने का जिम्मा खुद रानी लक्ष्मीबाई ने अपने हाथों में लिया, उन्होंने अपनी महिला सेना तैयार की और इसका नाम  'दुर्गा दल' रखा। इस दुर्गा दल का प्रमुख उन्होंने अपनी हमशक्ल झलकारी बाई को बनाया। उसी बिच रानी, दामोदर राव(उनके बेटे) के साथ अंग्रेजों से बच कर भागने में सफल हो गई। रानी झांसी से भाग कर कालपी पहुंची और तात्या टोपे से मिली।

रानी लक्ष्मीबाई ने तात्या टोपे के साथ मिलकर ग्वालियर के एक किले पर कब्ज़ा किया। लेकिन 18 जून 1858 को ग्वालियर के पास कोटा-की-सराय में ब्रिटिश सेना से लड़ते-लड़ते रानी लक्ष्मीबाई की मृत्यू हो गई।

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